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Sunday, April 7, 2019

दैनिक पूजा-पाठ कैसे, कब और कहाँ करनी चाहिए



श्री गणेशाय नमः 


हिन्दू धर्म में सदियों से भगवान् की पूजा पाठ, मंत्र जप साधनाओं का बड़ा महत्व बताया गया है और हम सबकी भगवान् में बहुत बड़ी आस्था है तथा उनको अपना इष्टदेव मानते हैं| इसलिए हम सब रोज़ प्रातः काल स्नानआदि से निवर्त होकर पूजा पाठ करते और अपने इष्टदेव से अपने और अपने परिवार की सुख समृद्धि खुशहाली के लिए मंगल कामना करते हैं





हम पूजा पाठ तो हर रोज बड़े ही श्रद्धा भाव से करते है लेकिन उसका फल हमे उतना नहीं मिलता जितने की हम कामना करते है| ऐसा क्यों होता है? ऐसा इसलिए होता है कि हम जाने या अनजाने में कुछ गलतियां कर देते है या फिर हम उचित ज्ञान नहीं होने के कारण अधूरी पूजा करते है जिसकी वजह से हमे अपनी पूजा पाठ का पूर्ण फल नहीं मिलताऔर एक दिन ऐसा आता है कि हमारा विश्वास ही डगमगाने लगता है और हम सोचने लगते है की हम बेवजह ही अपना किमती समय भगवान् की पूजा पाठ में बर्बाद कर रहे है लेकिन ऐसा नहीं है इसमें कुछ ध्यान देने योग्ये बातें है जिन पर अगर थोड़ा भी ध्यान दे दिया जाए तो हम अपनी पूजा से पूर्ण फल प्राप्त कर सकते है तथा अपने इष्टदेव  के प्रति पूर्ण  विश्वाश अर्जित कर सकते है. 





हम सब भली भांति जानते है की हर काम को करने का एक उचित तरीका होता है ऐसे ही तोआँख बंद करके हम कोई नहीं करते है,अगर करते है तो उसमें पूर्ण सफलता नहीं मिलती या फिर कुछ अनचाहा ही हो जाता हैइसलिए हर काम को करने का एक निर्धारित समय,स्थानऔर तरीकाहोता है इसलिए पूजा की जानकारी के बिना मेरी गारंटी है कि पूर्ण सफलता मिल ही नहीं सकतीइसलिए ही तो दैनिक या विशेष पूजा पाठ के विधि विधानों के बारे में सही जानकारियां हमारे शास्त्रोंग्रंथों  पुराणों में मिलती है|





नीचे दिए गए निम्न सूत्रों को पढ़े और अपने जीवन की दैनिक विशेष पूजा पाठ में सम्लित करें तथा पूर्ण सफलता प्राप्ति की तरफ अग्रसर हो |


दीपक का महत्त्व:-

शास्त्रों के अनुसार अपनी दैनिक पूजा अर्चना में दीपक का जलाना अतिआवश्यक है और इसके बिना पूजा को अधूरी मानते है | हिन्दू धर्म में सरसो के तेल या फिर देसी घी में दीपक जलाने का प्रावधान है और यह दीपक आपके रुके हुए कार्यों और अधूरी इच्छाओं को पूरा करने में पूर्ण कारगर साबित होता है| तेल का दीपक अपनी बाईं तरफ तथा घी का दीपक अपनी दाईं तरफ प्रज्वलित करे और ध्यान रहे दीपक बीच में बुझना नहीं चाहिए इससे पूर्ण फल की प्राप्ति नहीं होती | दीपक जलाने की संख्या में विषम संख्याओ को शुभ माना जाता है | इसलिए हमारे दीयों की संख्या भी विषम होनी चाहिए

ऐसी मान्यता है कि दीपक प्रज्वलित करके हम अपने जीवन के अज्ञान का अंधकार मिटाकर ज्ञान का प्रकाश करते हैं आरती करने के पश्चात दीपक जलाने से घर में सुख शांति और समृद्धि आती है इससे घर में लक्ष्मी का स्थायी रूप से वास होता है अपने घर और मंदिर में दीपक जलाने का धार्मिक कारण यह भी है कि सुबह और शाम के वक्त दीपक जलाने से अंधकार दूर होता है और साथ-साथ नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है | तेल से जले दीपक का प्रभाव उसके बूझने के आधे घंटे बाद तक भी घर वातावरण में बना रहता है जबकि घी का दीपक बूझने के बाद करीब चार घंटे तक भी वातावरण को सकारात्मक रखता है| जिसके घर में सुबह शाम दीपक जलाया जाता है वहां कभी अंधकार नहीं होता और उस घर में हमेशा सुख-समृद्धि का वास होता है.

दीप जलाना केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण रूप से भी लाभदायक है और जब घर में शुद्ध घी या सरसों के तेल से दीपक जलाया जाता है तो उसके धुएं से घर के माहौल में सात्विकता आती है और साथ ही इसके द्वारा आसपास के वातावरण में मौजूद हानिकारक कणों का भी नाश हो जाता है|



दीपक जलाते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए:-

शुभम् करोति कल्याणं, आरोग्यं धन संपदाम्।
शत्रुबुद्धि विनाशाय, दीपं ज्योति नमोस्तुते।।


तिलक का महत्त्व:-

हिन्दू धर्म में पूजा सामग्री में हर वस्तु का अलग महत्व है। सिंदूर को मातारानी की पूजा में उपयोग किया जाता है क्यों की माता रानी के सुहागन रूप की पूजा की जाती है और सिंदूर सुहाग का प्रतीकहोता है | इसलिए सिंदूर के बिना माता रानी की पूजा अर्चना अधूरी मानी जाती है और हमें कोई शुभ फल प्राप्त नहीं होता| भगवान् को चन्दन का तिलक लगाया जाता है साथ ही चन्दन का तिलक भक्त गण भी अपने माथे पर लगाते है जिससे आज्ञा चक्र को सक्रिय करके शांति प्रदान करता है| 



तिलक लगाने का मंत्र:-

केशवानन्न्त गोविन्द बाराह पुरुषोत्तम
पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु ।।
कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम्
ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम् ।।


धुप अगरबत्ती का महत्त्व:-

घर मंदिर में धुप और अगरबत्ती को भी पूजा अर्चना में वातावरण की शुद्धिकरण के लिए प्रयोग किया जाता है|



कलश का महत्त्व:-

कलश में भरा पवित्र जल इस बात का संकेत हैं कि हमारा मन भी जल की तरह हमेशा ही शीतल, स्वच्छ एवं निर्मल बना रहें। हमारा मन श्रद्धा, तरलता, संवेदना एवं सरलता से भरे रहें। यह क्रोध, लोभ, मोह-माया, ईष्या और घृणा आदि भावनाओं से हमेशा दूर रहें। कलश पर लगाया जाने वाला स्वस्तिष्क का चिह्न चार युगों का प्रतीक है। यह हमारी 4 अवस्थाओं, जैसे बाल्य, युवा, प्रौढ़ और वृद्धावस्था का प्रतीक है। पौराणिक शास्त्रों और ग्रंथो के अनुसार मानव शरीर की कल्पना भी मिट्टी के कलश से की जाती है। इस शरीररूपी कलश में प्राणिरूपी जल विद्यमान है। जिस प्रकार प्राणविहीन शरीर अशुभ माना जाता है, ठीक उसी प्रकार रिक्त कलश भी अशुभ माना जाता है।



इसी कारण कलश में दूध, पानी, पान के पत्ते, आम्रपत्र, केसर, अक्षत, कुंमकुंम, दुर्वा-कुश, सुपारी, पुष्प, सूत, नारियल, अनाज आदि का उपयोग कर पूजा के लिए रखा जाता है। इसे शांति का संदेशवाहक माना जाता है।  

आसन का महत्त्व:-

जमीन पर बिना आसन के बैठ कर पूजा कभी करें, ऐसा करने से पूजा का पुण्य भूमि को चला जाता है। कंबल के आसनों का विशेष महत्व है और कंबल के आसन पर बैठकर पूजा करना श्रेष्ठ माना जाता है। मां भगवती, लक्ष्मी माता , श्री राम भक्त हनुमान जी आदि की पूजा के लिए लाल रंग का कम्बल सबसे अच्छा माना जाता है। 

कंबल के आसन की अनुपस्थिति में वस्त्र या रेशम का आसन प्रयोग में ला सकते है, किसी भी मंत्र को सिद्ध करने में कुश का आसन सबसे प्रभावी है। आसन पर बैठने से पूर्व आसन का पूजन करना चाहिए या एक चम्मच जल एवं एक फूल आसन के नीचे अवश्य चढ़ाना चाहिए। आसन देवता से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि मैं जब तक आपके ऊपर बैठकर पूजा करूं तब तक आप मेरी रक्षा करें तथा मुझे सिद्धि प्रदान करें।


आसन व शरीर शुद्धिकरण मंत्र:-

अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतो5पि वा
यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।।

माला का महत्त्व:-

जानियें किस जाप में कौन सी माला है सर्वश्रेष्ठ और किस माला पर मन्त्र जाप से होती है व्यक्ति के आकर्षण में वृद्धि

तुलसी की माला: वैष्णव संप्रदाय का पालन करने वाले लोग मंत्र जप में तुलसी की माला का उपयोग करते हैं। तुलसी भगवान विष्णु के प्रिय देवता हैं, इसलिए इसकी माला के कारण विष्णु और कृष्ण मंत्रों का जाप बहुत फलदायी होता है। 



तुलसी की माला पहनने से व्यक्ति सात्विक बनता है। उसके भीतर की अनैतिक प्रवृत्ति नष्ट हो जाती है और वह आध्यात्मिकता में उच्च शिखर को छू सकता है।

रुद्राक्ष की माला: रुद्राक्ष की माला को शास्त्रों में सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। किसी भी उद्देश्य या इच्छा को पूरा करने के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग किया जा सकता है।



इससे किया गया जप कभी निष्फल नहीं जाता। हाथ के कंगन या किसी अन्य रूप में रुद्राक्ष की माला व्यक्ति में ऊर्जा, साहस और शक्ति को बढ़ाती है। शत्रु परास्त होते हैं और व्यक्ति को तेजस्वी बनता है

चंदन की माला: चंदन की माला दो प्रकार की होती है। सफेद चंदन और रक्त चंदन मंत्र का जाप दोनों प्रकार की माला से किया जा सकता है, लेकिन जो लोग मंगल ग्रह से पीड़ित हैं, उन्हें लाल चंदन के साथ मंत्रों का जाप करना चाहिए। 



भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति और मोक्ष के लिए भी रक्त चंदन का उपयोग किया जाता है। चंदन की माला पहनने से मंगल मजबूत होता है और वह बढ़ता है।

स्फटिक माला: यदि आप भौतिक वस्तुओं, सौंदर्य, आकर्षण और भोग की प्राप्ति के उद्देश्य से मंत्र का जाप कर रहे हैं, तो आपको स्फटिक माला का उपयोग करना चाहिए। 



स्फटिक की माला का प्रयोग लक्ष्मी मंत्रों के जाप में भी किया जाना चाहिए। स्फटिक माला पहनने से व्यक्ति का आकर्षण बढ़ता है और वह जल्द ही सभी का पसंदीदा बन जाता है।

कमल गट्टे की माला: धन, वैभव, ऐश्वर्य, भोग और विलासिता की प्राप्ति के लिए हमें कमल गट्टे की माला से मंत्र का जाप करना चाहिए। शत्रुओं के नाश के लिए भी कमल गट्टे की माला का उपयोग किया जाता है। 



तंत्र शास्त्रों के अनुसार कमल गट्टे की माला नहीं पहननी चाहिए। मंत्र का जाप करने के बाद इसे पूजा स्थान में रखें।

नोट :- अगर आपके पास कोई माला नहीं है तो कोई बात नहीं,  दैनिक पूजा अर्चना बिना माला के भी की जा सकती है लेकिन अगर किसी मंत्र को सिद्ध करना है या फिर जपना है तो आपको उससे सम्बंधित माला की आवश्यकता होगी और उसके बिना आपका काम नहीं चलेगा |  

पूजा में प्रसाद का महत्व:-

भगवान के हर स्वरुप को विभिन्न प्रकार के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं। पूजा बिना प्रसाद के की जा सकती है, लेकिन अगर पूजा में प्रसाद चढ़ाया जाए तो ज्यादा बेहतर होगा। 



प्रसाद में कोई भी प्रसाद चढ़ाया जा सकता है। फल, मिठाई और पानी भी प्रसाद के रूप में चढ़ाया जा सकता है। सफेद रंग का प्रसाद सबसे अच्छा माना जाता है।



पूजा में फूलों का महत्व:-

भगवान को फूल भेंट करके हम अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं। विभिन्न रंगों और सुगंधों के फूल विभिन्न प्रकार की भावनाओं को दर्शाते हैं। ये फूल कृत्रिम भी हो सकते हैं और असली भी। ये फूल अपने इष्ट देव को अर्पित करने चाहिए।



बताये हुए तरीको के अनुसार अगर आप अपने इष्ट देव (जिसकी आप पूजा करना चाहते है) की पूजा अर्चना करते हो तो अपने मन में ये विश्वास रखो की आपको अपनी पूजा का फल निश्चित रूप से आपको मिलेगा इसमें किसी भी तरह का शक और शंका आपको नहीं होनी चाहिए| बशर्ते कि आप श्रद्धा व नियमपूर्वक रोज सुबह और शाम या फिर किसी एक निश्चित समय और स्थान पर अपनी पूजा अर्चना करेंगे| 


क्षमा प्रार्थना मंत्र:-

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन
यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ।।





ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 

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