माता के 9 शक्तिशाली पर्व – 6 अप्रैल - 2019 से 14 अप्रैल - 2019
माँ जगदम्बा के 9 स्वरूप
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रि महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः। उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना।।
माँ दुर्गा के नौ (नव) स्वरूपों की पूजा
प्रथम दिन: पहला नवरात्रा वि0 सं0 2074, तदनुसार, वसंत ऋतु, चैत्र मास, शुक्ल पक्ष, 06 अप्रैल 2019, तिथिः शुक्ल पक्ष प्रतिपदा, वार, शनिवार, पूजा व घटस्थापना का समयः 6:09 से 10:19 एवं अभिजित मुहूर्त दोपहर 11.58 से 12.48 तक रहेगा।प्रथम दिन की देवी माँ शैलपुत्री।
दूसरा दिन: दूसरा नवरात्रा, तारीख, 07 अप्रैल 2019, तिथिः शुक्ल द्वितीया, वारः रविवार दिन की देवी माँ ब्रह्मचारिणी है।
तीसरा दिन: तृतीय नवरात्रा, तारीखः 08 अप्रैल 2019, तिथिः शुक्ल तृतीया, वार सोमवार, तीसरे दिन की देवीः– माँ चंद्रघण्टा है
चतुर्थ दिन: चतुर्थ नवरात्रा 09 अप्रैल 2019, तिथिः शुक्ल चतुर्थी,वारः मंगलवार, चतुर्थ दिन की देवी माँ कूष्माण्डा हैं।
पाँचवां दिन: पंचम नवरात्रा, तारीखः 10 अप्रैल 2019, शुक्ल पंचमी वार, बुधवार चवें दिन की देवी माँ स्कन्दमाता हैं।
छठवां दिन: षष्टम् नवरात्रा, 11 अप्रैल 2019, तिथिः शुक्ल, षष्ठी,वारः गुरुवार छठवें दिन की देवी माँ कात्यायनी हैं।
सातवां दिन: सप्तम् नवरात्रा, 12 अप्रैल 2019, तिथिः शुक्ल, सप्तमी और अष्टमी,वार, शुक्रवार सातवें दिन की देवी माँ कालरात्रि हैं।
आठवां दिन: अष्टम् नवरात्रा, 13 अप्रैल 2019, तिथिः शुक्ल, अष्टमी और नवमी, वार, शनिवार आठवें दिन की देवी माँ महागौरी हैं।
नवां दिन: नवम् नवरात्रा 14 अप्रैल 2019, तिथिः राम नवमी, वार, रविवार, नवें दिन की दुर्गा सिद्धिदात्री है।
नवरात्री मे कन्या पूजन का महत्व
प्रथम नवरात्रि प्रतिपदा से नवमी तक प्रत्येक दिन माँ की पूजा सभी मण्डलस्थ देवी-देवताओं से सहित षोडषोपचार विधि से बडे श्रद्धा भक्ति से करें। पूजा सम्पन्न होने पश्चात् प्रसाद वितरित करें तथा नव कन्याओं को साक्षात् देवी का प्रतिरूप मानते हुए और एक बालक को खीर, हलुआ, पूरी आदि का भोजन श्रद्धा सहित करवा कर उन्हें वस्त्राभूषण द्रव्य आदि भेंट दें। यदि आप व्रत रखते या रखती हैं तो आपका पारण दशमी के दिन होगा।
माँ जगदम्बा का प्रथम रूप शैलपुत्री के नाम से सुप्रसिद्ध है, इन्होंने पर्वतराज श्री हिमालय के यहाँ जन्म लिया तथा यह शैलपुत्री के नाम से सुविख्यात हुई। इन माँ का वाहन वृषभ (बैल) है, इन्होंने दाये हाथ में त्रिशूल तथा बाये हाथ में पद्म (कमल) को धारण किया हुआ है। इनकी कथा और कृपा बड़ी ही रोचक हैं, जिन्हें देवी भागवत आदि पुराणों मे पढ़ा जा सकता है।
माँ जगदम्बा के दूसरे रूप को माँ ब्रह्मचारिणी के रूप से जाना जाता है। इन्होंने दिव्य तप का अनुसरण कर दैत्यों के समूह को नष्ट किया तथा भक्तों पर वरद हस्त रखे हुए हैं। यह कृपा और दया की परम मूर्ति हैं। इन्होंने दायें हाथ में माला तथा बाये हाथ में कमण्डलु को धारण किया है।
माँ जगदम्बा के तीसरे स्वरूप को चंद्रघण्टा के नाम से जाना जाता है। यह भक्तों को अभय देने वाली तथा परम कल्याणकारी हैं। यह दावनों व राक्षसों को नष्ट कर धर्म की रक्षा करती है। इनके मस्तक पर घण्टे के रूप में अर्धचन्द्र विराजित हो रहा है, यह चंद्रघण्टा के नाम से अखिल जगत में प्रसिद्ध हैं। इनके दस हाथ है और खड्ग आदि अस्त्रों को धारण किए हुए हैं तथा सिंह में सवार हैं। यह भयानक घण्टे की नाद मात्र से शत्रु व दैत्यों का वध करती हैं।
माँ जगदम्बा का चतुर्थ रूप कूष्माण्डा के नाम से सुविख्यात है। यह संसार के सभी जीवों पर दया करने वाली हैं जो सूर्य लोक की वासी हैं। यह अति तेज से प्रकाशित हैं। अखिल ब्रह्मण्ड की जननी होने के कारण इन्हें कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है। माँ अष्टभुजाओं से युक्त है तथा हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल, पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र, गदा लोक कल्याण हेतु धारण कर रखा है। यह सिंहारूढ़ हैं तथा शत्रु, रोग, दुःख, भय को दूर करने वाली है।
माँ जगदम्बा के पांचवे रूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। यह भगवान स्कन्द की माता है। इन्होंने दायीं तरफ की नीचेवाली भुजा से भगवान स्कन्द को गोद लिया हुआ है। यह पद्म पुष्प, वरमुद्रा से युक्त हैं तथा भक्तों को अभीष्ट फल देने वाली हैं।
माँ जगदम्बा का षष्ठ्म स्वरूप कात्यायनी के नाम से सुविख्यात है। यह महिषासुर का मर्दन करनी वाली हैं। जो साक्षात् त्रिदेवों (ब्रह्म, विष्णु, महेश) के अंश से प्रकट हुई हैं। परम तेजस्वी, माँ कात्यायनी की पूजा सबसे पहले महर्षि कात्यायन ने की, तब से यह कात्यायनी के नाम सुप्रसिद्ध हैं। माँ चार भुजाओं वाली हैं यह अभय मुद्रा, वरमुद्रा, तलवार तथा कमल पुष्प को अपने हाथों में धारण किए हुए हैं। यह सिंहारूढ़ तथा भक्त को अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष मनोवांछित फल देतीं हैं।
कालरात्रि माँ भगवती का सातवां रूप है। भक्तों के हितार्थ माँ अति भयानक कालिरात्रि के रूप मे प्रकट होती हैं। माँ चार भुजाओं और त्रिनयन स्वरूप हैं जो, अत्यंत भयंकर व अतिउग्र हैं, यह घने अंधकार की तरह है। इनकी नासिकाओं से अग्नि की अति भयंकर ज्वालाएं प्रकट हो रही है। यह गर्दभारूढ़ है। इनके पूजन से सभी प्रकार के कष्ट रोग दूर होते है व सुख शांति प्राप्ति होती है।
माँ भवानी आँठवें स्वरूप में महागौरी के रूप में प्रकट हुई हैं। यह चंद्र और कुन्द के फूल की तरह गौर हैं। इसी कारण इन्हें महागौरी कहा जाता है। माँ चार भुजाओं वाली वृष में आरूढ़ हैं। यह अभयमुद्रा, वरमुद्रा, त्रिशूल तथा डमरू को अपने हाथों में धारण किए हुए हैं तथा कठोर तप से भगवान शंकर को प्राप्त किया था। इनकी आराधना से भक्तों को मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं।
माँ दुर्गा का नवां स्वरूप माँ सिद्धिदात्री का है। यह सभी सिद्धियों को देने वाली हैं। माँ चतुर्भुजी हैं जो कमल के आसन पर विराजित हैं यह सिंहारूढ़ हैं तथा अपने हाथों मे चक्र, गदा,शंख, और कमल को धारण किए हुए हैं। यह सर्वसिद्धि देने वाली और कष्टों दूर करने वाली हैं।
पूजा का संक्षिप्त एवं सरल विधान
माँ दूर्गा की पूजा में शुद्धता, संयम और ब्रह्मचर्य अति महत्वपूर्ण है। इस पूजन में कलश स्थापना राहुकाल, यमघण्ट काल में नहीं करनी चाहिए। नव दिन पर्यन्त घर व देवालय को विविध प्रकार के मांगलिक सुंगधित पुष्पों और विविध प्रकार के पत्तों से आलंकृति करना चाहिए। सर्वतोभद्र मण्डल, स्वास्तिक, नवग्रहादि, ओंकार आदि की स्थापना शास्त्रोक्त विधि से ही करना चाहिए। तथा स्थापित सभी देवी-देव समूहों का आवाह्न उनके “नाम मंत्रो” द्वारा करके, षोडषोपचार विधि से अर्चना करनी चाहिये।
इस पूजा मे नौ दिन तक अखण्ड ज्योति जलाने का विधान भी है, अतः साधकों को इस बात को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए। कि दीप हमारा कर्म साक्षी है, अतः उसे साक्षात् ब्रह्म का प्रतिरूप मानना चाहिए। अतः अखण्ड ज्योति में शुद्ध देसी घी, या गाय का देशी घी को प्रयोग में लनेा चाहिए। अखण्ड ज्योति को सर्वतोभद्र मण्डल के अग्निकोण में स्थापित करने का विधान होता है।
व्रत विधानम्
प्रतिवर्ष श्रद्वालु व भक्त साधकों द्वारा नवरात्रों में व्रत किये जाते हैं। जिसमें पहले, अंतिम और पूरे नव दिनों तक व्रत रखने का विधान भी हैं। व्रत में शुद्ध, शाकाहारी पदार्थों का ही प्रयोग करना उत्तम है। व्रती स्त्री-पुरूषों को प्याज, लहसुन आदि तामसिक तथा मांसाहारी पदार्थों का प्रयोग कदापि नहीं करना चाहिए। नवरात्री में अनुष्ठान की सम्पन्नता के समय नौ कन्याओं का पूजन साक्षात नौ देवी के रूपों मे किया जाता है। अतः उन्हें श्रद्धा के साथ समर्थानुसार भोजन व दक्षिणा देकर प्रणाम करना चाहिए।
नौ रात्रि व्रत मे खाने योग्य खाद्य पदार्थ
आलू, सिंघारें का आटा, देशी घी गाय का, फलों में आम, केले, संतरे, सेब, अंगूर, आदि तथा सूखे मेवे जैसे-काजू, अखरोट, बादाम, किसमिस, आदि प्रयोग करें तथा बेसन से बने लड्डू और अन्न, युक्त पदार्थ, व्रत में कदापि प्रयोग न करें।
नवरात्रि व्रत के समय यह न करें
अर्थात् इन पदार्थो को दृढ़ता से त्याग करें जैसे- पेय, कोक, टाफियां, लहसुन, प्याज, नमक, मांस, मिर्च, मसाले, मद्य, सिगरेट, तम्बाकू, गुटखा, आदि तामसिक खाद्यों का प्रयोग व्रत को भंग कर देते हैं। इसके अतिरिक्त व्रत पालन के समय क्रोध, चिंता आलस्य, कदापि न करें। सुगन्धित तेल, साबुन के प्रयोग और क्षौर कर्म से बचना चाहिए।
नवरात्री में रंगों महत्व
रंग हमारे मनः शक्ति को बड़ी तीव्रता से प्रभावित करते हैं। इसलिए साधकों को और सर्वसाधारण व्यक्ति को प्रत्येक दिन उसी रंग के कपड़े धारण करने चाहिए। जैसे-पहले नवरात्रि के दिन सफेद व लाल रंग के कपड़े अच्छे माने गए हैं। दूसरे में पीच व हल्का पीला केशरिया, रंगों को शुभ माना गया है और तीसरे दिन लाल, चैथे में सफेद, नीला, रंग, पांचवें में लाल, सफेद,, छठे में हरा, लाल, सफेद, सातवें मे लाल, नीला, आठवे में लाल, पीला, सफेद, और गुलाबी, रंग तथा नौवें नवरात्रि में सफेद व लाल, रंग के कपड़ों को शूभप्रद माना गया है।
संक्षिप्त पूजन सामग्री का विवरण
रौली, मौली, शुद्ध देशी गाय का घी पंचमेवा, पंचपात्र, कलश के लिए सोने, चाँदी, तांबे या मिट्टी का घड़ा, जो प्राप्त हो, अखण्ड ज्योति हेतु दीया, जनेऊ, सुपारी,पानके पत्ते, लौंग, इलायची, नारियल कच्चा,नारियल सूखा, अक्षत (चावल), गोलागिरी, चीनी बूरा, सुगन्धित धूप, अगरबत्ती,केसर, श्रृंगार की सामग्री, साड़ी, दूध, दही, शहद, रंग-लाल, पीला, हरा, काला, आदि,पंचरत्न, पंचगब्य, पंचपल्लव-लाल पुष्प, अष्टगंध, कपूर, जौ, काले तिल, रूई, मीठा, 5 मीटर लाल व सफेद, कपड़ा, पांच प्रकार फल, ब्राह्मणों के लिए पंच वस्त्र और सोने, चाँदी या ताँबे के पात्र आदि। जौ बोने के लिए गंगाजी की रेता बैठने के लिए आसन जिसमें कपड़ा न लगा हो, ऊनी, या फिर मृग, बाघ चर्मादि का हो तो शुभ है।
निषेधः श्रीगणेश जी को तुलसी व दुर्गा को दुर्वा (हरी घास) चढ़ाने का विधान नहीं हैं।
षड़षोपचार पूजन करने की विधि
निम्न मंत्रों से तीन बार आचमन करें।
मंत्र- ऊँ केशवाय नमः, ऊँ नारायणाय नमः, ऊँ माधवाय नमः
तथा हृषिकेषाय नमः बोलते हुए हाथ धो लें।
आसन धारण के मंत्र- मंत्र-ऊँ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरू चासनम्।।
पवित्रीकरण हेतु मंत्र – मंत्र- ऊँ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा। यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षंतद्बाह्याभ्यन्तरं शुचि।।
चंदन लगाने का मंत्रः- मंत्र- ऊँ आदित्या वसवो रूद्रा विष्वेदेवा मरूद्गणाः। तिलकं ते प्रयच्छन्तु धर्मकामार्थसिद्धये।।
रक्षा सूत्र मंत्र – (पुरूष को दाएं तथा स्त्री को बांए हाथ में बांधे)
मंत्रः- ऊँ येनबद्धोबली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।तेनत्वाम्अनुबध्नामि रक्षे माचल माचल ।।
दीप जलाने का मंत्रः- मंत्र- ऊँ ज्योतिस्त्वं देवि लोकानां तमसो हारिणी त्वया। पन्थाः बुद्धिष्च द्योतेताम् ममैतौ तमसावृतौ।।
संकल्प की विधिः- ऊँ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः, ऊँ नमः परमात्मने, श्रीपुराणपुरूषोत्तमस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपराद्र्धे श्रीष्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे- ऽष्टाविंषतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे ………………..श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः अमुकषर्मा अहं ममात्मनः सपुत्रस्त्रीबान्धवस्य श्रीनवदुर्गानुग्रहतो……………….. आदि मंत्रो को शुद्धता से बोलते हुए शास्त्री विधि से पूजा पाठ का संकल्प लें।
प्रथमतः श्री गणेश जी का ध्यान, आवाहन, पूजन करें।
श्री गणश मंत्रः- ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ। निर्विध्नं कुरू मे देव सर्वकायेषु सर्वदा।।
कलश स्थापना के नियम:-पूजा हेतु कलश सोने, चाँदी, तांबे की धातु से निर्मित होते हैं, असमर्थ व्यक्ति मिट्टी के कलश का प्रयोग करत सकते हैं। ऐसे कलश जो अच्छी तरह पक चुके हों जिनका रंग लाल हो वह कहीं से टूटे-फूटे या टेढ़े न हो, दोष रहित कलश को पवित्र जल से धुल कर उसे पवित्र जल गंगा जल आदि से पूरित करें। कलश के नीचे पूजागृह में रेत से वेदी बनाकर जौ या गेहूं को बौयें और उसी में कलश कुम्भ के स्थापना के मंत्र बोलते हुए उसे स्थाति करें। कलश कुम्भ को विभिन्न प्रकार के सुगंधित द्रव्य व वस्त्राभूषण अंकर सहित पंचपल्लव से आच्छादित करें और पुष्प, हल्दी, सर्वोषधी अक्षत कलश के जल में छोड़ दें। कुम्भ के मुख पर चावलों से भरा पूर्णपात्र तथा नारियल को स्थापित करें। सभी तीर्थो के जल का आवाहन कुम्भ कलश में करें।
कलश स्थापन मुहूर्त:
06 अप्रैल 2019 दिन शनिवार, तिथि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हो रहा है जो प्रात: 06:09 के बाद अभिजीत मुहूर्त मे लगभग दोपहर 11:58 से 12.48 तक रहेगा।
आवाहन मंत्र करें: –ऊँ कलषस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रूद्रः समाश्रितः। मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः।।
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति । नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू ।।
षोडषोपचार पूजन प्रयोग विधि
(1) आसन (पुष्पासनादि)-
ऊँ अनेकरत्न-संयुक्तं नानामणिसमन्वितम्। कात्र्तस्वरमयं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्।।
(2) पाद्य (पादप्रक्षालनार्थ जल)
ऊँ तीर्थोदकं निर्मलऽच सर्वसौगन्ध्यसंयुतम्। पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रतिगृह्यताम्।।
(3) अघ्र्य (गंध पुष्प्युक्त जल)
ऊँ गन्ध-पुष्पाक्षतैर्युक्तं अध्र्यंसम्मपादितं मया।गृह्णात्वेतत्प्रसादेन अनुगृह्णातुनिर्भरम्।।
(4) आचमन (सुगन्धित पेय जल)
ऊँ कर्पूरेण सुगन्धेन वासितं स्वादु षीतलम्। तोयमाचमनायेदं पीयूषसदृषं पिब।।
(5) स्नानं (चन्दनादि मिश्रित जल)
ऊँ मन्दाकिन्याः समानीतैः कर्पूरागरूवासितैः।पयोभिर्निर्मलैरेभिःदिव्यःकायो हि षोध्यताम्।।
(6) वस्त्र (धोती-कुत्र्ता आदि)
ऊँ सर्वभूषाधिके सौम्ये लोकलज्जानिवारणे। मया सम्पादिते तुभ्यं गृह्येतां वाससी षुभे।।
(7) आभूषण (अलंकरण)
ऊँ अलंकारान् महादिव्यान् नानारत्नैर्विनिर्मितान्। धारयैतान् स्वकीयेऽस्मिन् षरीरे दिव्यतेजसि।।
(8) गन्ध (चन्दनादि)
ऊँ श्रीकरं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्। वपुषे सुफलं ह्येतत् षीतलं प्रतिगृह्यताम्।।
(9) पुष्प (फूल)
ऊँ माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्त्तितः।मयाऽऽहृतानि पुष्पाणि पादयोरर्पितानि ते।।
(10) धूप (धूप)
ऊँ वनस्पतिरसोद्भूतः सुगन्धिः घ्राणतर्पणः।सर्वैर्देवैः ष्लाघितोऽयं सुधूपः प्रतिगृह्यताम्।।
(11) दीप (गोघृत)
ऊँ साज्यः सुवर्तिसंयुक्तो वह्निना द्योतितो मया।गृह्यतां दीपकोह्येष त्रैलोक्य-तिमिरापहः।।
(12) नैवेद्य (भोज्य)
ऊँ षर्कराखण्डखाद्यानि दधि-क्षीर घृतानि च। रसनाकर्षणान्येतत् नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्।।
(13) आचमन (जल)
ऊँ गंगाजलं समानीतं सुवर्णकलषस्थितम्। सुस्वादु पावनं ह्येतदाचम मुख-षुद्धये।।
(14) दक्षिणायुक्त ताम्बूल (द्रव्य पानपत्ता)
ऊँ लवंगैलादि-संयुक्तं ताम्बूलं दक्षिणां तथा। पत्र-पुष्पस्वरूपां हि गृहाणानुगृहाण माम्।।
(15) आरती (दीप से)
ऊँ चन्द्रादित्यौ च धरणी विद्युदग्निस्तथैव च। त्वमेव सर्व-ज्योतींषि आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम्।।
(16) परिक्रमाः–
ऊँ यानि कानि च पापानि जन्मांतर-कृतानि च। प्रदक्षिणायाः नष्यन्तु सर्वाणीह पदे पदे।।
भागवती एवं उसकी प्रतिरूप देवियों की एक परिक्रमा करनी चाहिए।यदि चारों ओर परिक्रमा का स्थान न हो तो आसन पर खड़े होकर दाएं घूमना चाहिए।
क्षमा प्रार्थना:–
ऊँ आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां चैव न जानामि भक्त एष हि क्षम्यताम्।। अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम। तस्मात्कारूण्यभावेन भक्तोऽयमर्हति क्षमाम्।। मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं तथैव च। यत्पूजितं मया ह्यत्र परिपूर्ण तदस्तु मे।।
ऊँ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पष्यन्तु मा कष्चिद् दुःख-भाग्भवेत् ।।
(सभी सुखी हों, सभी निरोग हों, सभी सर्वत्र कल्याण ही कल्याण देखें एवं कोई भी कहीं दुख का भागी न हो।)
"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय "
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