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Wednesday, April 3, 2019

नवरात्रों में सिद्ध करे नवार्ण मंत्र और प्राप्त करें माता की असीम कृपा


श्री गणेशाय नमः 

मंत्र तो अनेक हैं , देवता भी अनेक हैं 

लेकिन मंत्र महाधिराज एक है  

वह है भगवती दुर्गा का तीव्रतम तांत्रोक्त नवार्ण मंत्र ||




ऐं 
यह बीज नवार्ण मंत्र का पहला और सरस्वती बीज है, इसको सिद्ध करने पर स्मरण शक्ति तीव्र होती है, यदि बालक इस साधना को या नित्य इस बीज का उच्चारण करे तो , निश्चय ही वह परीक्षा में सफलता प्राप्त करता है, सिर दर्द, माइग्रेन , आधा शीशी आदि विकार और बीमारियां इस बीज के निरंतर उच्चारण करने से ठीक हो जाती हैं, यही बीज अच्छा वक्ता बनने में, वाणी के द्वारा लोगों को प्रभावित करने में पूर्ण रूप से समर्थ है ।


ह्रीं 

यह लक्ष्मी बीज है, जो कि सम्पूर्ण विश्व में प्रचलित है । इस बीज की साधना करने से या इसका मंत्र जप करने से दरिद्रता दूर होती है, निरंतर आर्थिक उन्नति होने लगती है और अर्थ संबंधी रूके हुए काम ठीक हो जाते हैं। जो साधक निरंतर केवल इसी बीज का उच्चारण करता है, उसका व्यापार बढ़ने लगता है , आर्थिक स्रोत मजबूत होते है और अनायास धन प्राप्ति के विशेष अवसर बन जाते हैं ।



क्लीं

यह काली बीज है, शत्रुओं का संहार करने, शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने, मुकदमे में सफलता प्राप्त करने और मन के विकारों, काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिए यह महत्वपूर्ण बीज है । जो इस बीज का जप कर कोर्ट कचहरी में जाता है, तो उस दिन उसके अनुकूल वातावरण बना रहता है । काली को प्रसन्न करने और उसके प्रत्यक्ष दर्शन करने के लिए यह अपने आप में सिद्ध बीज है।

चा

यह सौभाग्य बीज है और इसकी महत्ता शास्त्रों ने एक स्वर से स्वीकार की है। सौभाग्य की रक्षा, पति की उन्नति, पति के स्वास्थ्य और पति की | पूर्ण आयु के लिए यह अपने आप में अद्वितीय बीज है। इसी प्रकार यदि पत्नी बीमार हो या उसे किसी प्रकार की तकलीफ हो, तो इस अक्षर का निरंतर जप करने से या पत्नी को इस बीज मंत्र से सिद्ध करके जल पिलाने से उसके स्वास्थ्य में आश्चर्यनक अनुकूलता आने लगती है, गृहस्थ जीवन की सफलता के लिए बीज मंत्र ज्यादा उपयोगी है ।

मुं

यह आत्म मंत्र है, आत्मा की उन्नति, कुंडलिनी जागरण, जीवन की पूर्णता और अंत में ब्रह्म से पूर्ण साक्षात्कार के लिए यह मंत्र सबसे उपयुक्त और महत्वपूर्ण है। उच्चकोटि के संन्यासी निरंतर इस मंत्र का जप करते हुए, अपने जीवन को पूर्णता प्रदान करते हैं। जो साधक निरंतर इस बीज मंत्र का उच्चारण करते हैं। उन्हें कुण्डलिनी शीघ्र ही जाग्रत करने में सफलता मिलती है।

डा

यह संतान सुख बीज है, और भगवती जगदम्बा का सबसे प्रिय बीज है, अगर संतान उत्पन्न न हो रहे हो या किसी प्रकार की पुत्र से संबंधित तक विकार हो, तो इस बीज मंत्र की सिद्धि करने से अनुकूलता प्राप्ति होती है। पुत्र के स्वास्थ्य और उसकी दीर्घायु के लिए इसी बीज मंत्र का सहारा लिया जाता है।

यै

यह संतान सुख बीज है, और भगवती जगदम्बा का सबसे प्रिय बीज है, अगर संतान उत्पन्न न हो रहे हो या किसी प्रकार की पुत्र से संबंधित तक विकार हो, तो इस बीज मंत्र की सिद्धि करने से अनुकूलता प्राप्ति होती है। पुत्र के स्वास्थ्य और उसकी दीर्घायु के लिए इसी बीज मंत्र का सहारा लिया जाता है। साधक निरंतर इस बीज मंत्र का जप करता रहता है, उसका शीघ्र भाग्योदय हो जाता है और वह अपने जीवन में सभी दृष्टियों से पूर्ण सफलता प्राप्त कर लेता है।

वि

यह सम्मान, प्रसिद्धि, उच्चता, श्रेष्ठता और सफलता का बीज मंत्र है । किसी प्रकार के पुरस्कार प्राप्त करने, समाज में सम्मान और यश प्राप्त करने, राज्य में उन्नति और सफलता पाने के लिए इस बीज मंत्र का उपयोग किया जाता है । जो साधक निरंतर इस बीज का प्रयोग करता है या इसकी साधना करता है, वह निश्चय ही राज्य सम्मान एवं राज्य उन्नति प्राप्त करने में सफल हो पाता है।

च्चे

यह सम्पूर्णता का बीज है, जीवन सभी दृष्टियों से पूर्ण और सफल हो, चाहे स्वास्थ्य, धन, परिवार, यश, सुख, सौभाग्य, संतान, भाग्योदय और सफलता का तत्व हो, जो साधक इस बीज मंत्र की साधना करता है, वह निश्चय ही अपने जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त करता है।







इस प्रकार प्रत्येक बीज का अध्ययन करने से नवार्ण मंत्र इस प्रकार से बनता है ।


।। ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ।।


नवार्ण मंत्र की सिद्धि हेतु नौ दिन में सवा लाख मंत्र जप करने से सफलता मिलती है । सवा लाख मंत्र का तात्पर्य 1250 मालाएं जप से सवा लाख मंत्र जप हो जाता है । | इस साधना को नवरात्रि पर या किसी भी महीने की त्रयोदशी से प्रारंभ कर अगले नौ दिनों में यह नर्वाण मंत्र सिद्ध किया जा सकता है ।

साधना काल में साधक पीली धोती पहिन , उत्तर की ओर मुँह कर सामने भगवती महाकाली का चित्र एवं नवार्ण यंत्र स्थापित कर , काली हकीक माला से मंत्र जप करें । साधना के समय तेल का दीपक अखण्ड होना चाहिए ।



एक शिष्य एक बार अपने गुरु के पास गया और कहा कि मुझे कोई विशेष मंत्र और साधना दीजिये जिससे मैं सिद्धि प्राप्त कर सकें। उसके गुरु ने भगवान नारायण की एक मूर्ति दी और नारायण मंत्र उस मूर्ति के सामने जपने के लिये कहा। उस शिष्य ने नियम पूर्वक मूर्ति के सामने आसन , ध्यान , धूप , दीप इत्यादि किया नित्य मंत्र जप करता रहा। इस प्रकार मंत्र जप करते करते छ : महीने बीत गये उसे किसी प्रकार का आशीर्वाद और फल प्राप्त नहीं हुआ तो वह निराश हो गया तथा अपने गुरु के समक्ष पुनः गया और बताया कि उसे किसी प्रकार के दर्शन इत्यादि प्राप्त नहीं हो रहे हैं । उस पर गुरु मुस्कराए और उसे एक शिव की मूर्ति और कहा : ‘ इनके सामने मंत्र जप करो, भोलेनाथ तो देवों के देव हैं वे तुम पर जरूर प्रसन्न होंगे। ' ' शिष्य ने गुरु आज्ञा मान कर शिव मूर्ति को अपने पूजा स्थान रख कर पूजन प्रारंभ किया तथा पहले प्राप्त नारायण मूर्ति को एक तरफ रख दिया । शिव की पूजा करते करते काफी दिन बीत गये । लेकिन कोई प्रभाव नहीं पड़ा । फिर वह अपने गुरु के पास गया और कहा कि मुझे ऐसे देवता की मूर्ति और मंत्र चाहिए, जिसका प्रत्यक्ष दर्शन और लाभ प्राप्त हो सके । गुरु ने कहा कि ‘ कलियुग में महाकाली प्रत्यक्ष देवता हैं और तुम महाकाली की पूजा तथा नवार्ण मंत्र नित्य जप करो । इससे तुम्हें अवश्य सिद्धि प्राप्त होगी । " । शिष्य ने यह बात मानकर माँ काली की पूजा प्रारंभ की तथा शिव की मूर्ति को भी उठाकर नारायण मूर्ति के पास रख दिया । उसे पूजा करते हुए दो - चार दिन हुए ही थे और वह माँ काली के आगे अगरबत्ती, धूप जला रहा था । उसने देखा कि धूप का धुआँ शिव मूर्ति की ओर जा रहा है । उसे बहुत गुस्सा आया और उसने सोचा कि शिव को क्या अधिकार है मेरे द्वारा जलाए गए इस अगरधूप को ग्रहण करने का ? मैं तो माँ काली के समक्ष धूप कर रहा हैं । माँ काली ही इसे ग्रहण कर सकती है । ऐसा सोच कर उसने शिव मूर्ति की नाक दोनों रन्ध्रों में रुई डाल दी ।अपना यह काम पूरा करना कि उसके सामने भगवान शिव आशीर्वाद मुद्रा में प्रकट हुए, भक्त एक दम आश्चर्य पड़ गया, उसने भगवान शिव को दंडवत् प्रणाम किया, भगवान शिव ने आशीर्वाद देते हुए कहा - ' ' मैं तुम्हारी भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हूँ, तुम कोई वरदान माँगो । " | भक्त ने कहा - ' हे भगवन ! मैं अत्यंत आश्चर्य चकित हूँ कि जब मैंने आपकी छ: महीने तक निरंतर पूजा की , पंचाक्षरी मंत्र जप किया तो आप ने मुझे कोई आशीर्वाद नहीं दिया और जब मैंने आपकी मूर्ति हटा दी और मंत्र जप बंद कर दिया तो आप मुझे आशीर्वाद देने के लिए प्रकट हो गये । ' ' भगवान शिव ने कहा - “ हे ! भक्त ! अब तक तुम मेरी मूर्ति को केवल मूर्ति मानकर पूजा कर रहे थे उसे एक धातु का टुकड़ा मान रहे थे। लेकिन आज जब तुमने मुझे केवल मूर्ति नहीं मानकर साक्षात् देवता माना है तथा यह भी माना कि मैं उपस्थित हूँ और मेरी धूप की सुगंध केवल के पास ही जानी चाहिए । तब मैं तुमसे अलग कैसे हो सकता हूँ यह कथा एक प्रतीक हो सकती है । लेकिन वास्तव में जब हम अपने पूजा स्थान में जो भी यंत्र , चित्र स्थापित करते हैं उनमें वास्तविक देव का अनुभव करें तो शीघ्र ही सफलता प्राप्त होती है ।



"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय "

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